ऐसा कहा जाता हैं कि महाराज गंगाधर राव नेवलेकर अपने पुत्र की मृत्यु से कभी उभर ही नही पाए और सन 1853 में महाराज बहुत बीमार पड़ गये, तब उन दोनों ने मिलकर अपने रिश्तेदार [ महाराज गंगाधर राव के भाई ] के पुत्र को गोद लेना निश्चित किया. इस प्रकार गोद लिए गये पुत्र के उत्तराधिकार पर ब्रिटिश सरकार कोई आपत्ति न ले, इसलिए यह कार्य ब्रिटिश अफसरों की उपस्थिति में पूर्ण किया गया. इस बालक का नाम आनंद राव था, जिसे बाद में बदलकर दामोदर राव रखा गया.
रानी लक्ष्मी का उत्तराधिकारी बनना –
21 नवम्बर, सन 1853 में महाराज गंगाधर राव नेवलेकर की मृत्यु हो गयी, उस समय रानी की आयु मात्र 18 वर्ष थी. परन्तु रानी ने अपना धैर्य और सहस नहीं खोया और बालक दामोदर की आयु कम होने के कारण राज्य – काज का उत्तरदायित्व महारानी लक्ष्मीबाई ने स्वयं पर ले लिया. उस समय लार्ड डलहौजी गवर्नर था.
उस समय यह नियम था कि शासन पर उत्तराधिकार तभी होगा, जब राजा का स्वयं का पुत्र हो, यदि पुत्र न हो तो उसका राज्य ईस्ट इंडिया कंपनी में मिल जाएगा और राज्य परिवार को अपने खर्चों हेतु पेंशन दी जाएगी. उसने महाराज की मृत्यु का फायदा उठाने की कोशिश की. वह झाँसी को ब्रिटिश राज्य में मिलाना चाहता था. उसका कहना था कि महाराज गंगाधर राव नेवलेकर और महारानी लक्ष्मीबाई की अपनी कोई संतान नहीं हैं और उसने इस प्रकार गोद लिए गये पुत्र को राज्य का उत्तराधिकारी मानने से इंकार कर दिया. तब महारानी लक्ष्मीबाई ने लन्दन में ब्रिटिश सरकार के खिलाफ मुक़दमा दायर किया. पर वहाँ उनका मुकदमा ख़ारिज कर दिया गया. साथ ही यह आदेश भी दिया गया की महारानी, झाँसी के किले को खाली कर दे और स्वयं रानी महल में जाकर रहें, इसके लिए उन्हें रूपये 60,000/- की पेंशन दी जाएगी. परन्तु रानी लक्ष्मीबाई अपनी झाँसी को न देने के फैसले पर अडिग थी. वे अपनी झाँसी को सुरक्षित करना चाहती थी, जिसके लिए उन्होंने सेना संगठन प्रारंभ किया.
संघर्ष की शुरुआत :
मेरी झाँसी नहीं दूंगी : 7 मार्च, 1854 को ब्रिटिश सरकार ने एक सरकारी गजट जारी किया, जिसके अनुसार झाँसी को ब्रिटिश साम्राज्य में मिलने का आदेश दिया गया था. रानी लक्ष्मीबाई को ब्रिटिश अफसर एलिस द्वारा यह आदेश मिलने पर उन्होंने इसे मानने से इंकार कर दिया और कहा ‘ मेरी झाँसी नहीं दूंगी ’और अब झाँसी विद्रोह का केन्द्रीय बिंदु बन गया. रानी लक्ष्मीबाई ने कुछ अन्य राज्यों की मदद से एक सेना तैयार की, जिसमे केवल पुरुष ही नहीं, अपितु महिलाएं भी शामिल थी; जिन्हें युध्द में लड़ने के लिए प्रशिक्षण दिया गया था. उनकी सेना में अनेक महारथी भी थे, जैसे : गुलाम खान, दोस्त खान, खुदा बक्श, सुन्दर – मुन्दर, काशी बाई, लाला भाऊ बक्शी, मोतीबाई, दीवान रघुनाथ सिंह, दीवान जवाहर सिंह, आदि. उनकी सेना में लगभग 14,000 सैनिक थे.
10 मई, 1857 को मेरठ में भारतीय विद्रोह प्रारंभ हुआ, जिसका कारण था कि जो बंदूकों की नयी गोलियाँ थी, उस पर सूअर और गौमांस की परत चढ़ी थी. इससे हिन्दुओं की धार्मिक भावनाओं पर ठेस लगी थी और इस कारण यह विद्रोह देश भर में फ़ैल गया था . इस विद्रोह को दबाना ब्रिटिश सरकार के लिए ज्यादा जरुरी था, अतः उन्होंने झाँसी को फ़िलहाल रानी लक्ष्मीबाई के अधीन छोड़ने का निर्णय लिया. इस दौरान सितम्बर – अक्टूबर, 1857 में रानी लक्ष्मीबाई को अपने पड़ोसी देशो ओरछा और दतिया के राजाओ के साथ युध्द करना पड़ा क्योकिं उन्होंने झाँसी पर चढ़ाई कर दी थी.
इसके कुछ समय बाद मार्च, 1858 में अंग्रेजों ने सर ह्यू रोज के नेतृत्व में झाँसी पर हमला कर दिया और तब झाँसी की ओर से तात्या टोपे के नेतृत्व में 20,000 सैनिकों के साथ यह लड़ाई लड़ी गयी, जो लगभग 2 सप्ताह तक चली. अंग्रेजी सेना किले की दीवारों को तोड़ने में सफल रही और नगर पर कब्ज़ा कर लिया. इस समय अंग्रेज सरकार झाँसी को हथियाने में कामयाब रही और अंग्रेजी सैनिकों नगर में लूट – पाट भी शुरू कर दी. फिर भी रानी लक्ष्मीबाई किसी प्रकार अपने पुत्र दामोदर राव को बचाने में सफल रही.
काल्पी की लड़ाई : इस युध्द में हार जाने के कारण उन्होंने सतत 24 घंटों में 102 मील का सफ़र तय किया और अपने दल के साथ काल्पी पहुंची और कुछ समय कालपी में शरण ली, जहाँ वे ‘तात्या टोपे’ के साथ थी. तब वहाँ के पेशवा ने परिस्थिति को समझ कर उन्हें शरण दी और अपना सैन्य बल भी प्रदान किया.
22 मई, 1858 को सर ह्यू रोज ने काल्पी पर आक्रमण कर दिया, तब रानी लक्ष्मीबाई ने वीरता और रणनीति पूर्वक उन्हें परास्त किया और अंग्रेजो को पीछे हटना पड़ा. कुछ समय पश्चात् सर ह्यू रोज ने काल्पी पर फिर से हमला किया और इस बार रानी को हार का सामना करना पड़ा.
युद्ध में हारने के पश्चात् राव साहेब पेशवा, बन्दा के नवाब, तात्या टोपे, रानी लक्ष्मीबाई और अन्य मुख्य योध्दा गोपालपुर में एकत्र हुए. रानी ने ग्वालियर पर अधिकार प्राप्त करने का सुझाव दिया ताकि वे अपने लक्ष्य में सफल हो सके और वही रानी लक्ष्मीबाई और तात्या टोपे ने इस प्रकार गठित एक विद्रोही सेना के साथ मिलकर ग्वालियर पर चढ़ाई कर दी. वहाँ इन्होने ग्वालियर के महाराजा को परास्त किया और रणनीतिक तरीके से ग्वालियर के किले पर जीत हासिल की और ग्वालियर का राज्य पेशवा को सौप दिया.
रानी लक्ष्मी बाई मृत्यु (Rani laxmi bai death) :
17 जून, 1858 में किंग्स रॉयल आयरिश के खिलाफ युध्द लड़ते समय उन्होंने ग्वालियर के पूर्व क्षेत्र का मोर्चा संभाला. इस युध्द में उनकी सेविकाए तक शामिल थी और पुरुषो की पोषक धारण करने के साथ ही उतनी ही वीरता से युध्द भी कर रही थी. इस युध्द के दौरान वे अपने ‘राजरतन’ नामक घोड़े पर सवार नहीं थी और यह घोड़ा नया था, जो नहर के उस पार नही कूद पा रहा था, रानी इस स्थिति को समझ गयी और वीरता के साथ वही युध्द करती रही. इस समय वे बुरी तरह से घायल हो चुकी थी और वे घोड़े पर से गिर पड़ी. चूँकि वे पुरुष पोषक में थी, अतः उन्हें अंग्रेजी सैनिक पहचान नही पाए और उन्हें छोड़ दिया. तब रानी के विश्वास पात्र सैनिक उन्हें पास के गंगादास मठ में ले गये और उन्हें गंगाजल दिया. तब उन्होंने अपनी अंतिम इच्छा बताई की “ कोई भी अंग्रेज अफसर उनकी मृत देह को हाथ न लगाए. ” इस प्रकार कोटा की सराई के पास ग्वालियर के फूलबाग क्षेत्र में उन्हें वीरगति प्राप्त हुई अर्थात् वे मृत्यु को प्राप्त हुई.
ब्रिटिश सरकार ने 3 दिन बाद ग्वालियर को हथिया लिया. उनकी मृत्यु के पश्चात् उनके पिता मोरोपंत ताम्बे को गिरफ्तार कर लिया गया और फांसी की सजा दी गयी.
रानी लक्ष्मीबाई के दत्तक पुत्र दामोदर राव को ब्रिटिश राज्य द्वारा पेंशन दी गयी और उन्हें उनका उत्तराधिकार कभी नहीं मिला. बाद में राव इंदौर शहर में बस गये और उन्होंने अपने जीवन का बहुत समय अंग्रेज सरकार को मनाने एवं अपने अधिकारों को पुनः प्राप्त करने के प्रयासों में व्यतीत किया. उनकी मृत्यु 28 मई, 1906 को 58 वर्ष में हो गयी.
इस प्रकार देश को स्वतंत्रता दिलाने के लिए उन्होंने अपनी जान तक न्यौछावर कर दी.
‘मणिकर्णिका : द क्वीन ऑफ झाँसी’ आने वाली फिल्म (Upcoming Movie Manikarnika : The Queen of Jhansi in Hindi)
झाँसी की रानी लक्ष्मी बाई जी के जीवन पर आधारित एक फिल्म आने जा रही है जिसका नाम है मणिकर्णिका : द क्वीन ऑफ झाँसी. इस फिल्म में उनके प्रेरणादायी जीवन के उन सभी पहलूओं को दर्शाया गया है, जिसके लिए वे प्रसिद्ध हुई थी. इस फिल्म में सन 1857 के भारतीयों द्वारा किये गये विद्रोह के दौरान ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के खिलाफ उनके युद्ध में प्रदर्शन को बहादुरी, वीरता एवं नारी शक्ति की एक प्रेरणादायी कहानी के रूप में भी प्रदर्शित किया गया है. जोकि उनके बाद की पीढ़ी और आने वाली पीढ़ी को प्रेरित करता है. यह फिल्म एक भारतीय ऐतिहासिक जीवनी फिल्म है.
मणिकर्णिका फिल्म का ट्रेलर (Manikarnika Film Trailer)
इस फिल्म दिसम्बर में 18 तारीख को रिलीज़ हुआ हैं, इस फिल्म के ट्रेलर में कंगना रानौत को तलवार से दुश्मन के सिर काटते हुए, फूलों के साथ खेलते हुए, एक रॉयल बंगाल टाइगर को मारते हुए और उनके खून से सने चेहरे के साथ युद्ध में हर – हर महादेव का आह्वान करते हुए दिखाया गया है. इस फिल्म के ट्रेलर को देखकर लोग इस फिल्म को देखने के लिए काफी उत्सुक भी हो रहे हैं. मणिकर्णिका फिल्म 2019 जनवरी महीने की 25 तारीख को रिलीज़ हो जाएगी, जिसे आप अपने आस – पास के सिनेमाघरों में जाकर देख सकते हैं.
इस फिल्म में उनके फर्स्ट पोस्टर यानि उनके लुक को सन 2017 में रिलीज़ किया गया था. इस फिल्म की शूटिंग शुरू करने से पहले कंगना रानौत ने हरिद्वार में गंगा नदी में डूबकी लगाकर फिल्म की सफलता के लिए प्रार्थना की थी.
कास्ट एवं क्रू मेम्बर (Cast and Crew Members)
इस फिल्म में रानी लक्ष्मी बाई के किरदार का अभिनय फिल्म अभिनेत्री कंगना रानौत द्वारा किया जा रहा है. साथ ही वे इस फिल्म का निर्देशन भी कर रही है. हालाँकि इस फिल्म का निर्देशन कंगना रानौत के अलावा राधा कृष्ण जगर्लामुदी भी कर रहे हैं.
इस फिल्म के निर्माता ज़ी स्टूडियोज, कमल जैन और निशांत पिट्टी हैं. इस फिल्म में शंकर एहसान लोय द्वारा म्यूजिक दिया गया है.
इस फिल्म में अतुल कुलकर्णी तात्या टोपे के किरदार में दिखाई देने जा रहे हैं, तो वहीँ गंगाधर राव का किरदार जिस्शु सेनगुप्ता, झलकारी बाई का किरदार टीवी एवं फिल्म अभिनेत्री अंकिता लोखंडे ने निभाया है.
इस फिल्म का कुल बजट 125 करोड़ रूपये है. 9 जनवरी 2019 को मणिकर्णिका फिल्म का अधिकारिक म्यूजिक लांच किया गया है. यह फिल्म भारत में न सिर्फ हिंदी भाषा में रिलीज़ हो रही है बल्कि यह तेलगु एवं तमिल भाषा में भी डब्ड की गई है.
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