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आरबीआई बॉन्ड का मैच्योरिटी पीरियड 7 साल का होता है. हालांकि, वरिष्ठ नागरिकों को 4 साल के बाद प्री-मैच्योर एग्जिट का विकल्प मिलता है, जिस पर कुछ कटौती की जाती है. इसके ब्याज का भुगतान हर 6 महीने पर होता है, जिस पर स्लैब के हिसाब से टैक्स भी देना पड़ता है. इसके रिटर्न पर टीडीएस (TDS) कटौती भी होती है.
NRI नहीं कर सकते निवेश
रिजर्व बैंक के बॉन्ड में कोई भी भारतीय नागरिक या हिंदू अविभाज्य परिवार – एचयूएफ (HUF) पैसे लगा सकते हैं. आप अभिभावक के तौर पर नाबालिग के नाम से भी इस बॉन्ड में निवेश कर सकते हैं और संयुक्त रूप से भी इसे खरीदने के लिए अप्लाई कर सकते हैं. हालांकि, एनआरआई को इस बॉन्ड में पैसे लगाने की अनुमति नहीं है. इसमें न्यूनतम 1,000 रुपये से निवेश की शुरुआत की जा सकती है, जबकि अधिकतम की कोई सीमा नहीं है.
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नकद में सिर्फ 20 हजार तक निवेश की इजाजत
इस बॉन्ड को सिर्फ इलेक्ट्रॉनिक रूप में खरीदने की इजाजत है. निवेशक चाहें तो नकदी में भी इन्हें खरीद सकते हैं, लेकिन उसकी Maximum limit 20 हजार रुपये है. इस बॉन्ड को एसबीआई समेत किसी भी सरकारी बैंक या फिर ICICI, IDBI, HDFC और Axis जैसे प्राइवेट बैंक से भी खरीद सकते हैं.
NSC से जुड़ी होती है इसकी ब्याज दर
आरबीआई बॉन्ड की ब्याज दरें नेशनल सेविंग सर्टिफिकेट (NSC) से जुड़ी रहती है. सरकार NSC पर जो भी ब्याज देती है, उसमें 0.35 फीसदी ज्यादा ब्याज बढ़ाकर दिया जाता है. लिहाजा NSC की ब्याज दरों में कोई भी बदलाव होने का असर आरबीआई के फ्लोटिंग बॉन्ड पर भी पड़ता है.
निवेशक ये बात भी जानें
आरबीआई बॉन्ड खरीदने वाले निवेशकों के लिए यह जानना भी जरूरी है कि यह बॉन्ड ट्रांसफरेबल नहीं है. सिर्फ निवेशक की मौत के बाद ही इसे नॉमिनी के नाम पर ट्रांसफर करा सकते हैं. इसके अलावा इस बॉन्ड की ट्रेडिंग भी शेयर बाजार में नहीं की जा सकती. न ही निवेशक इन बॉन्ड पर बैंक, वित्तीय संस्थान, एनबीएफसी आदि से लोन ले सकते हैं.
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Tags: Investment and return, Personal finance, RBI
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