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मेघालय में काली मिर्च की खेती
मारक ने सबसे पहले कारी मुंडा नामक काली मिर्च की किस्म उगाई थी. वो अपनी खेती में हमेशा जैविक खाद का इस्तेमाल करते हैं. उन्होंने शुरुआती दौर में 10,000 रुपये में काली मिर्च के करीब 10,000 पौधे लगाए. साल बीतने के साथ ही इनकी संख्या बढ़ाते गए. इनके द्वारा उगाई गई काली मिर्च की दुनिया भर में बड़ी डिमांड है. इनका घर पश्चिम गारो हिल्स की पहाड़ियों में पड़ता है. लोग जैसे ही इनके इलाके में प्रवेश करते हैं, उन्हें काली मिर्च जैसे मसालों की खुशबू मिलने लगती है.
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गारो हिल्स पूरा पहाड़ी और जंगली इलाका है. मारक ने पेड़ों की कटाई किए बिना और पर्यावरण को कोई नुकसान पहुंचाए बिना काली मिर्च की खेती का दायरा बढ़ाया. उन्हें इस काम में राज्य कृषि और बागवानी विभाग का पूरा सहयोग मिला. मारक ने अपनी खेती के साथ अपने जिले के किसानों की खेती बढ़ाने में बढ़चढ़ कर मदद की है. नानादर बी. मारक ने मेघालय में काली मिर्च की खेती में बड़ी मिसाल कायम की है.
केंद्र सरकार ने किया सम्मानित
साल 2019 में उन्होंने अपने बागान से 19 लाख रुपये की काली मिर्च का उत्पादन किया है. उनकी यह कमाई दिनों दिन बढ़ती ही जा रही है. भारत सरकार ने नानादर बी. मारक की खेती के क्षेत्र में की गई मेहनत और लगन को देखते हुए सराहना की है. 72वें गणतंत्र दिवस के अवसर पर नानादर बी. मारक को जैविक खेती को बढ़ावा देने के लिए और देश के अन्य किसानों के लिए प्रेरणास्रोत बनने के लिए इन्हें पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित किया है.
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कैसे करते हैं खेती
नानादर बी मारक 8-8 फीट की दूरी पर काली मिर्च के पौधे लगाते हैं. दो पौधों के बीच इतनी दूरी रखना जरूरी है क्योंकि इससे पौधों को बढ़ने में आसानी रहती है. पेड़ से काली मिर्च की फलिया तोड़ने के बाद उसे सुखाने और निकालने में सावधानी बरती जाती है. दाने निकालने के लिए पानी में कुछ समय डुबाया जाता है और फिर सुखाया जाता है। इससे दानों को अच्छा रंग मिल जाता है.
खेती के दौरान प्रति पौधों पर 10-20 किलो तक गाय के गोबर से बनी खाद और वर्मी कंपोस्ट दिया जाता है. पौधों से फली तोड़ने के लिए थ्रेसिंग मशीन का इस्तेमाल किया जाता है ताकि तोड़ने का काम तेज हो. शुरू में काली मिर्च की फली में 70 फीसद तक नमी होती है जिसे ठीक से सुखा कर कम किया जाता है. नमी ज्यादा होने पर दाने खराब हो सकते हैं.
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